प्रथम मानसून की बूदों में अदभुत रोगनिवारक शक्तियां : पंकज अव‍धिया सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

प्रथम मानसून की बूदों में अदभुत रोगनिवारक शक्तियां : पंकज अव‍धिया

पंकज अवधिया जी भारत के जाने माने कृषि वैज्ञानिक हैं, इन्‍होंनें छत्‍तीसगढ के पारंपरिक रोग उपचार पद्धति एवं औषधीय पौंधों के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय कार्य किया है । अवधिया जी छत्‍तीसगढ के धरोहर हैं, इनके कई शोध प्रबंध देश व विदेशों में मानक के रूप में स्‍थापित हैं । इन्‍होंने प्रथम मानसून की बूंदों में रोग निवारक क्षमता के संबंध में भी शोध किया है जिसमें इन्‍होंने पाया है कि वर्षा की पहली बूंदें कैंसर जैसे रोग को भी खत्‍म करने की क्षमता रखती हैं । अपने अंग्रेजी चिटठे में पंकज अवधिया जी नें इसके छत्‍तीसगढ में हो रहे पारंपरिक प्रयोगों पर लिखा है पढें :

Healing power of the first monsoon rain
http://southasia. oneworld. net/article/ view/114063/ 1/

Traditional Medicinal Knowledge about First Rain Water collected from different species and its uses in Indian state Chhattisgarh
http://ecoport. org/ep?SearchTyp e=interactiveTab leView&itableId= 2481

टिप्पणियाँ

  1. बिल्कुल सही है। हम बचपन से ही पहली वर्षा में नहाकर गर्मियों के दिन में शरीर में उग आई घमोरियाँ, अलाइयाँ, और कई चर्मरोग एक ही झटके में भगाते आए हैं।

    लेकिन आजकल प्रदूषण तथा ग्लोबल वार्मिंग के कारण पहली वर्षा तेजाबी वर्षा होती है, भयंकर बिजलियाँ कड़कती है, बादल गरजते हैं, ओले पड़ते हैं, सैंकड़ों हजारों लोगों की जान जाती है, करोड़ों के माल का नुकसान होता है। अतः इससे बचना जरूरी है। पिछले दो-चार दिनों के अखबारों में ऐसी कई घटनाएँ पढ़ने को मिली हैं।

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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