विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
नया भू अधिग्रहण अधिनियम (भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनव्य र्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 ) के प्रभावी हो जाने के बावजूद छ.ग.शासन के द्वारा पुराने अधिनियम (भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894) के तहत् की जा रही भू अधिग्रहण कार्यवाही उद्योगपतियों एवं नौकरशाहों के गठजोड़ का नायाब नमूना है. भारत गणराज्य के चौंसठवें वर्ष में संसद के द्वारा नया भू अधिग्रहण अधिनियम अधिनियमित कर दिया गया है जिसका प्रकाशन भारत का राजपत्र (असाधारण) में दिनांक 27 सितम्बकर 2013 को किया गया है. नया भू अधिग्रहण अधिनियम के प्रवृत्त होने की तिथि के संबंध में इस नये अधिनियम की धारा 1 (3) में कहा गया है कि ‘यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे’ इसी तरह पुराने अधिनियम के व्यपगत होने के संबंध में इस नये अधिनियम की धारा 24 में स्पष्टत किया गया है कि जहॉं पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के द्वारा जारी कार्यवाही में यदि धारा 11 के अधीन कोई अधिनिर